इतनी सी देर
मुंह के एक कोने में गुटखा दबा कर बंद मुंह से ही हंसते हंसते बोलते हुए बड़े बाबू चले आ रहे थे। कितनी कठिन साधना है यह भी, एक जान साथ में तीन काम। बेचारा निरीह मुख कर भी क्या सकता था। जब तक बन पड़ा साथ दिया और जब न सहा गया तो कुछ बोझा कम करने के लिए एक कोने में निकाल दिया।
मतवाले हाथी सी मस्त चाल चलते हुए शर्मा जी आखिरकार अपनी कुर्सी पर पहुंच ही गए। ज्यादा देर नहीं हुई थी, निश्चित समय से मात्र पैंतालीस मिनट ही तो देर हुई थी। एक घंटे में पूरे पंद्रह मिनट शेष थे, अभी भी।
सामने की कुर्सी पर बैठा एक व्यक्ति उनको घूरे जा रहा था। उनके आते ही तिलमिलाता हुआ बरस पड़ा।
"सर मैं कबसे आपका इंतजार कर रहा हूं। अब जल्दी से बताइए क्या हुआ मेरे काम का?"
शर्मा जी - "अरे! इतनी भी क्या जल्दी है। ज़रा ठहरो, तनिक सांस तो ले लेने दो। ज़रा जान में जान आए, तब देखते हैं तुम्हारी फाइल भी।"
"पप्पू, बेटा चाय पिलाओ भई, कड़क मलाई मार के।"
"आप भी पीजिएगा", उस व्यक्ति की ओर मुखातिब होते हुए वे बोले।
फिर खुद ही जवाब भी दे डाला। "वैसे आप तो अभी घर से चाय पीकर ही आ रहे होगे।"
"अरे पप्पू! एक ही चाय लाना, ये नहीं पिएंगे।"
जैसे पप्पू उनकी बात सुनकर दो चाय ले ही आता। उनकी एक एक कलाबाजी से वाकिफ था। उसे पता नहीं था क्या, कि शर्मा जी एक दमड़ी भी न खर्च करेंगे कभी किसी दूसरे पर।
अब बारी रजनी जी से पंगा लेने की थी। सो एक बार फिर उनके मुखारबिंद से मोती झड़ने लगे।
"रजनी मैडम! कितना समय स्वेटर बुनने में ही लगाइएगा। कभी कभी हमारी मदद भी कर दिया करिए, ऑफिस के काम में।"
रजनी जी बिफर पड़ीं और बोली, " देखिए, शर्मा जी मुंह न खुलवाइए बाहर वालों के सामने। आपसे पहले आती हूं रोज़, और किसी को इस तरह इंतजार नहीं कराती। अभी चैक कर लीजिए कोई भी पेंडिंग फाइल नहीं मिलेगी।"
"हम औरतें बहुत मेहनती होती हैं। सुबह घर का सारा काम निबटा कर भी रोज़ समय पर ऑफिस पहुंच जाती हूं। अगर खाली समय में थोड़ा अपना काम भी कर लिया, तो इसमें क्या बुरा है। किसी दूसरे का काम अड़ा कर तो नहीं रखा ना, आपकी तरह।"
"अरे रजनी जी बुरा क्यों मानती हैं। हमारी हालत तो पता है आपको, ज्यादा देर बैठ नहीं सकता, थक जाता हूं। बीच बीच में आराम भी तो चाहिए ना। वैसे भी इतनी सी देर में कोई मर तो नहीं जाता ना, थोड़ी देर इंतजार का भी अपना मज़ा है।" इतना कह कर शर्मा जी ठठाकर हंस दिए।
इसी गहमागहमी के बीच ही पप्पू शर्मा जी की चाय रख जाता है।
शर्मा जी सुडुप सुडुप चाय पीने लगे और सामने वाले व्यक्ति के चेहरे पर अनगिनत भाव आते जाते रहे।
इतनी सी देर
चाय पीने के बाद शर्मा जी में फुर्ती आई और उन्होंने उस व्यक्ति की फाइल निकाली और बोले।
"हमने कहा था ना कि नक्शा पास करने के लिए सारे कागज नहीं लगे हैं अभी। वजन रखने में देर कर दी ना तुमने, इसलिए इतना समय लगा। चलो, ये लो फाइल सब कर दिया है। आराम से काम करो और मिठाई जरूर खिला देना नक्शा पास होने की खुशी में।"
वह व्यक्ति भुनभुनाता हुआ गर्दन हिलाकर चल दिया। मन ही मन कसम खा रहा होगा, कि कभी इस ऑफिस की चौखट दुबारा न लांघनी पड़े।
उसके जाने के बाद शर्मा जी के नए नवेले स्मार्ट फोन पर श्री राम चन्द्र कृपालु की धुन बजने लगी। शर्मा जी ने बहुत उत्साहित होकर फोन उठाया। फोन पर उनका बड़ा बेटा सौरभ था।
हैलो बोलते ही उनके चेहरे का रंग उड़ गया। आंखें भीग गईं।
"क्या? ऐक्सिडेंट! गौरव का..."
पथराई जबान से बस इतना ही निकल पाया।
गौरव उनका छोटा बेटा है, जो अभी बी टेक करके कुछ दिनों की छुट्टी पर घर आया है।
दूसरी तरफ से सौरभ रोते हुए लगातार बोले जा रहा था।
"पापा, गौरव का एक्सिडेंट हो गया है। एक तेज़ रफ्तार गाड़ी ने उसकी स्कूटी को टक्कर मार दी। बहुत खून बह गया है। आप जल्दी आ जाओ। मैं अकेले नहीं संभाल पाऊंगा।"
"रास्ते से लोगों ने उसे उठा कर अस्पताल तो पहुंचा दिया था, समय पर। मगर अस्पताल में अभी कोई डॉक्टर नहीं हैं। ये लोग बता रहे हैं, कि डॉक्टर अक्सर देर से आते हैं।"
"सरकारी पदों पर बैठे लोग इतने गैर ज़िम्मेदार कैसे हो सकते हैं पापा....।"
"सबको अपने आराम की पड़ी है। किसी की जान की कोई कीमत नहीं है क्या?"
"पापा गौरव को कुछ होगा......तो नहीं ना।"
उसके बाद सौरभ ने जो भी कहा होगा, शर्मा जी को न कुछ सुनाई ही पड़ा और न उनसे कुछ कहते बना। भीतर ही भीतर अपने ही शब्द गूंज रहे थे बस, "वैसे भी इतनी सी देर में कोई मर तो नहीं जाता ना। वैसे भी इतनी सी देर में कोई मर तो नहीं जाता ना। वैसे भी इतनी सी देर में कोई मर तो नहीं जाता ना।”
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आपके सुझावों एवं समीक्षाओं की प्रतीक्षा में: ✍️ गीता गरिमा पांडेय🌹🌹
Sahil writer
05-Jul-2021 03:34 PM
Nice
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Chhavi
03-May-2021 01:45 PM
👍👍nice
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Author sid
08-Mar-2021 05:09 PM
Good story mam
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